बुधवार, 10 दिसंबर 2014

आप या तो बड़े हो सकते हैं या बच्चे हो सकते हैं। मनोवैज्ञानिक रूप से बड़ा व्यक्ति चित्रकार की तरह होता है। चित्रकार वह चित्र बनाता है, जो बनाना चाहता है। वह अपनी पसंद खुद तय करता है। मनोवैज्ञानिक रूप से बच्चा एक चित्र की भांति है। वह यह नहीं बता सकता है कि उसे क्या बनना है। चित्र को पसंद बताने का हक नहीं, उसे सिर्फ पाने का हक है।

यह बात कहीं से तार्किक नहीं हो सकती कि अपनी जिंदगी पहले किसी और के हाथ में सौंप दी जाए। फिर हमेशा इस बात पर कुढ़ते, रोते और शिकायत करते रहें कि हम खुश नहीं हैं। आज्ञाकारी चित्र को जो भी मिले, सहर्ष स्वीकार करना चाहिए क्योंकि उसने चित्रकार के सामने खुद ही समर्पण किया है।

यह जरूरी नहीं कि जो लोग आज्ञाकारी न हों वे सभी निरादर के ही पात्र हों। यह भी जरूरी नहीं कि आज्ञाकारी व्यक्ति हमेशा ही सम्मान को हकदार हो। भगवान महावीर ने कहा है, 'जियो और जीने दो।' ईसा मसीह ने कहा है, 'जितना प्रेम खुद से करते हैं, उतना पड़ोसी से भी करें।' इन मसीहाओं ने भी यही संदेश दिया है कि दूसरों को अहमियत दें लेकिन उनसे पहले खुद के लिए ऐसा करें।
 
महात्रया रा-
महात्रया रा आध्‍यात्‍मिक गुरु हैं। वे देश-विदेश में अपने आध्‍यात्‍मिक व्‍याख्‍यानों के माध्‍यम से लोगों को सेल्‍फ रिएलाइजेशन के लिए मार्गदर्शित करते हैं। उनके प्रभावी संदेश व्‍यक्‍ति की नकारात्‍मक ऊर्जा को सकारात्‍मक ऊर्जा में परिवर्तित करके जीवन की दिशा बदल देते हैं। उनके व्‍याख्‍यान सुनकर कई प्रसिद्ध हस्‍तियां, बिजनेसमैन, स्‍पोट़र्समैन और स्‍टूडेंट़स अपनी आंतरिक ऊर्जा की मदद से नई ऊंचाइयां प्राप्‍त कर चुके हैं। महात्रया रा जीवन जीने का एक नया रास्‍ता बताते हैं – ‘इंफीनीथीज्‍म’, जिसके माध्‍यम से मनुष्‍य को अपनी असीम क्षमता का अहसास हो सकता है।
 
इंफीनीमैग्‍जीन-
इंफीनीमैग्‍जीन प्रेरक कहानियों, उद्धरणों, विकासोन्मुख पोस्टरों और महान व्यक्तियों के विचारों से बनी है। दुनिया पर अमिट छाप छोड़ने वाले अलग-अलग पृष्ठभूमि के महान लोगों और बिना कुछ बोले विपरीत हालात में महान ऊंचाइयां छूने वाले लोगों पर नियमित कॉलम्स हैं। यह मैग्‍जीन पाठकों को विपरीत हालात से जूझने के लिए प्रेरित करती है। इंफीनीमैग्‍जीन के माध्‍यम से महात्रया रा लोगों को अपनी पूरी क्षमता और वह ऊंचाइयां हासिल करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, जहां तक वे अधिकारपूर्वक पहुंच सकते हैं।
 हिंदू धर्म में गुरुवार के दिन को गुरु की आराधना का दिन माना गया है। देव गुरु भगवान शिव जगतगुरु के रूप में भी पूजनीय हैं। गुरु बृहस्पति ने भी शिव कृपा से ही सुराचार्य यानी देवगुरु का पद प्राप्त किया। इसलिए गुरुवार के दिन को शिव पूजा गुरु दोष शांति करने वाली भी मानी गई है।

गुरु दोष से कमजोर बुद्धि, वैवाहिक बाधा या दाम्पत्य में कलह और संतान पीड़ा से गुजरना पड़ता है। कुण्डली में गुरु के कमजोर या बुरे ग्रह योग से बने दोष शिव पूजा से दूर हो जाते हैं, इससे कोई व्यक्ति असफलता या अनिष्ट का सामना नहीं करता।

इसी पूजा परंपरा में गुरुवार के लिए यहां बताया जा रहा शिव पूजा का आसान उपाय गुरु दोष शांति के लिए बहुत ही प्रभावी होगा। जानिए यह उपाय और शिव व गुरु पूजा की भाग्योदय करने वाली सरल विधियां-
 
 
- इस दिन शाम के समय स्नान कर शिवलिंग पर गंध, पुष्प, अक्षत, फूल अर्पित कर विशेष रूप से शक्कर मिले जल की धारा चढ़ाएं।

- शिव पर शक्कर मिले जल की धारा का फल, बुद्धि दोष दूर कर सभी गुरु दोषों का अंत करने वाला बताया गया है।

- इसके बाद शुद्ध जल से स्नान कराकर शिव को धतूरा, बिल्वपत्र, सफेद वस्त्र किसी भी सरल शिव मंत्र जैसे ‘ॐ नम: शिवाय’ या ‘नम: शिवाय’ के साथ अर्पित करें। गेहूं, चने की दाल के बने पकवानों का भोग शिव को लगाएं।

- शिव रुद्राष्टक, शिव पंचाक्षरी या फिर शिव मानस पूजा का स्मरण करें।

- घी के दीप व कर्पूर से शिव आरती कर गुरु दोष की हर भय बाधा दूर करने की प्रार्थना करें।

इसी तरह शिव के साथ देवगुरु की प्रसन्नता से धन व सौभाग्य की कामना पूरी करने के लिए अगली स्लाइड्स पर बताए उपाय भी न चूकें-

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वादों के बोझ को उठाते है रोकर
झूठ के पुलन्दे को सर पर बिठाते है।

दयार ए गैर में मेहमां बने बैठे है वो
मगर अफ़सोस गफ़लत में दयार ए ग़म बनाते है?

हमें तो खौफ है उनके अहद की रोशनाई से
बनाकर घर फिर वो मकबरे की छत बनाते है

चलो उनके दयार ए गर्ब में देखें ज़रा
वो क्या छुपाते है? हमें और क्या बताते है।

दयार ए हिज्र में तक्सीम हम भी हो गए।
दयार ए हिन्द में अब हम फ़कत कुछ गीत गाते है।

दयार ए इश्क में दाखिल हुए थे सरफरोशी से
दयार ए ग़म में हम अब सभी से मुहं छुपाते हैं।

दयार ए हक़ में झूठे लोग बैठे थे।
दयार ए उम्र में अब खुद को हम कमजर्फ पाते है।

बुनियाद के पत्थर को मारते है ठोकर
ऊंची इमारत के आगे सर झुकाते है
वादों के बोझ को उठाते है रोकर
झूठ के पुलन्दे को सर पर बिठाते है।

दयार ए गैर में मेहमां बने बैठे है वो
मगर अफ़सोस गफ़लत में दयार ए ग़म बनाते है?

हमें तो खौफ है उनके अहद की रोशनाई से
बनाकर घर फिर वो मकबरे की छत बनाते है

चलो उनके दयार ए गर्ब में देखें ज़रा
वो क्या छुपाते है? हमें और क्या बताते है।

दयार ए हिज्र में तक्सीम हम भी हो गए।
दयार ए हिन्द में अब हम फ़कत कुछ गीत गाते है।

दयार ए इश्क में दाखिल हुए थे सरफरोशी से
दयार ए ग़म में हम अब सभी से मुहं छुपाते हैं।

दयार ए हक़ में झूठे लोग बैठे थे।
दयार ए उम्र में अब खुद को हम कमजर्फ पाते है।

बुनियाद के पत्थर को मारते है ठोकर
ऊंची इमारत के आगे सर झुकाते है। 
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GOTRA OF MEGHWAL

meghwal gotra
राँगी,  डाँगी आदरा जैपाल जोगचन्द आयच आसोपिया आडान्या अरटवाल बडलबिडला बदरिया बारडा बागेच बाघेला बागराना बजाड बलाच बरार बामणिया बाणिया बाण्यात बरी बारूपाल बरवड बावल्या बावरा बाजक बेघड बेरिया बेरवा भादरू भद्रावयादव भडसिया भानाल भाटाल्या भाटी भाटीया भटनागर भायलान भियावार भिन्डल बिडल भोलोद्या बिकुन्दिया बिराईच बोखा ब्रजपाल बुङगया खुगालिया विरास चाहिल्या चन्देल छटवाल चूहडा चौहान दहिया दानोदिया देऊ दोपन देवपाल धणदे धान्धु धाणिया धूमडा धर्माणी ढोर दिवराया दादालिया ढिय एपा गाडी गन्डेर गाँधी गरवा गहलोत गेँवा घोटल गोदा गोगलु गोयल गुजारिया गुलचर गुनपाल हालु हाटेला हेवाल हिँगडा हिँगोलिया ईनाण्या ईणकिया ईन्दलिया जाम जलवाणिया जनागल जतरवाल जावन जायल जोधा जोधावत जोगल जोगु जोरम जोया जुईया कडेला कजाड काला कांटिवाल कर्णावत काबा कटारिया कथिरिया कट्टा खाल्या खाम्भु खंजानिया खारडिया खत्री खीँची खिमयादा खिँटोलिया कोडेचा कोचर कुन्नड लडाना लखटिया लालणेचा लहवा लोहिया लिखणिया लखानी लीलड लूना लोथिया माचर मंगलेचा मेहरडा महरनया मकवाणा मांगलिया मांगस मरहड मरवण मेहरा मेलका मेव मेई मोबारसा मोहिल मोयल मुछा नागोडा निँबडिया परिहार पलास्या पालडिया पन्नु परमार पारंगी पारखी पातलिया पतीर पावटवाल पिपरलिया पूनड राडिया राहिया राणवा राठी राठौड रोलन रोलिया सामर्या संडेला साँखला सीमार सिंडार्या सेजु छपूनिया शेवल शोर्य सिधप सोनेल सूटवाल सोडा सोलंकी सुमारा सूणवाल तालपा तनाण तंवर तिड़दिया टुंटिया तुर्किया वर्मा

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मंगलवार, 9 दिसंबर 2014

शनिवार, 6 दिसंबर 2014


history of meghwal


अगर कनिष्क वासुदेव, मिनांडर, भद्र मेघ, शिव मेघ, वासिठ मेघ आदि पुरातात्विक अभिलेखांकन व मुद्राएँ न मिलतीं, तो इतनी अत्यल्प जानकारी भी हम प्राप्त नहीं कर सकते थे. चूँकि बौध धर्म ही उस समय भारत का धर्म था और संपूर्ण राजन्य वर्ग व आम जनता इस धर्म के प्रति श्रद्धावनत थी, तो निश्चित है कि ये राजवंश बौद्ध धर्म की पक्ष ग्राह्ता के कारण ही पुराणादि साहित्य में समुचित स्थान नहीं पा सके……
इस प्रकार मेघवंश क्षत्रिय वंश रहा है न कि क्षत्रियोत्पन्न हिंदू धर्म की एक जाति. उनकी हीनता की जड़ें उनकी हिंदू धर्म में विलीनीकरण की प्रक्रिया में सन्निहित हैं……
….कई समाज सुधारकों ने इस जाति के उत्थान व गौरव बोधहेतु इस जाति की सामाजिक रीति, रिवाज़ों व व्यवस्थाओं को वैदिक आधार प्रदान करने की सफल चेष्टा भी की, परंतु वे इस जाति का गौरव बोधऊपर नहीं उठा पाए…….