शनिवार, 6 दिसंबर 2014

history of meghwal


अगर कनिष्क वासुदेव, मिनांडर, भद्र मेघ, शिव मेघ, वासिठ मेघ आदि पुरातात्विक अभिलेखांकन व मुद्राएँ न मिलतीं, तो इतनी अत्यल्प जानकारी भी हम प्राप्त नहीं कर सकते थे. चूँकि बौध धर्म ही उस समय भारत का धर्म था और संपूर्ण राजन्य वर्ग व आम जनता इस धर्म के प्रति श्रद्धावनत थी, तो निश्चित है कि ये राजवंश बौद्ध धर्म की पक्ष ग्राह्ता के कारण ही पुराणादि साहित्य में समुचित स्थान नहीं पा सके……
इस प्रकार मेघवंश क्षत्रिय वंश रहा है न कि क्षत्रियोत्पन्न हिंदू धर्म की एक जाति. उनकी हीनता की जड़ें उनकी हिंदू धर्म में विलीनीकरण की प्रक्रिया में सन्निहित हैं……
….कई समाज सुधारकों ने इस जाति के उत्थान व गौरव बोधहेतु इस जाति की सामाजिक रीति, रिवाज़ों व व्यवस्थाओं को वैदिक आधार प्रदान करने की सफल चेष्टा भी की, परंतु वे इस जाति का गौरव बोधऊपर नहीं उठा पाए…….
   

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